पुत्रदा एकादशी व्रत कथा: धार्मिक महत्व और लाभ

 सनातन धर्म में एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है। इसमें पुत्रदा एकादशी को विशेष स्थान प्राप्त है। यह व्रत संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले भक्तों के लिए अति शुभ माना जाता है। वर्ष में दो बार आने वाली पुत्रदा एकादशी को पौष और श्रावण मास में मनाया जाता है। इस लेख में हम पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, पूजन विधि, और इस व्रत के धार्मिक लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।


पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा: धार्मिक महत्व और लाभ


पुत्रदा एकादशी का नाम ही इसके उद्देश्य को स्पष्ट करता है—यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत का पालन श्रद्धा और भक्ति के साथ करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है और उसके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

इस व्रत के पालन से न केवल संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि पहले से संतानवान व्यक्ति भी अपने बच्चों के कल्याण और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए यह व्रत रख सकते हैं। भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है।


पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब भद्रावती नामक नगरी में राजा सुकेतुमान और रानी शैव्या राज्य करते थे। उनका जीवन सुखमय था, परंतु संतान न होने के कारण वे सदैव चिंतित रहते थे। संतानहीनता के दुख ने उन्हें मानसिक कष्ट में डाल रखा था।

राजा सुकेतुमान संतान प्राप्ति के लिए अनेक यज्ञ और अनुष्ठान कर चुके थे, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। निराश होकर वे एक दिन वन की ओर चल दिए। वहाँ वे एक सरोवर के किनारे पहुंचे और जल पीने के बाद विश्राम करने लगे।

उसी समय उन्होंने कुछ ऋषियों को पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हुए देखा। राजा ने ऋषियों से इस व्रत के बारे में जानकारी प्राप्त की और उनकी आज्ञा से विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया।

इस व्रत के प्रभाव से रानी शैव्या ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र न केवल राज्य का योग्य उत्तराधिकारी बना, बल्कि प्रजा के कल्याण में भी संलग्न रहा।


पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

१. व्रत का संकल्प: व्रत करने वाले को एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने धूप-दीप जलाकर संकल्प करें।

२. पूजन सामग्री: पूजन में तुलसी के पत्ते, फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, और पंचामृत का उपयोग करें।

३. भगवान विष्णु की पूजा: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु को नैवेद्य अर्पित करें।

४. रात्रि जागरण: एकादशी की रात्रि को जागरण करें और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें।

५. द्वादशी पर पारण: द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें। इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है।


पुत्रदा एकादशी के धार्मिक लाभ

१. संतान प्राप्ति: जिन दंपतियों को संतान नहीं है, उन्हें पुत्रदा एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।

२. पारिवारिक सुख: यह व्रत परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।

३. पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत के पालन से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं।

४. संतान की उन्नति: जिनके बच्चे हैं, वे उनके सुखमय और उज्ज्वल भविष्य के लिए यह व्रत रख सकते हैं।


निष्कर्ष

पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन करने से जीवन में संतान सुख के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस व्रत का महत्व अतुलनीय है।

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